मध्य प्रदेश में आदिवासी नेतृत्व के अभाव से जूझती भाजपा

 


पार्टी में आदिवासी चेहरों की कोई कमी नहीं है लेकिन पार्टी ने न जाने क्यों उनप्रतिभाशाली आदिवासियों को आगे आने का मौका ही नहीं दिया जो वास्तव में परिवर्तन के लिए अपनी उपयोगिता सिद्ध कर सकते थे. पार्टी अपनी सुविधा के अनुसार एक ही प्रकार के चेहरों को इस समाज के ऊपर थोपती रही और यही कारण रहा की इस समाज के दूसरे नेतृत्व को उभरने का मौका ही नहीं मिला. न जाने क्यों पार्टी ने यह मानसिकता बनाकर रखी जब इनसे काम चल रहा है तब दूसरा प्रयोग करने की क्या आवश्यकता है. जबकि इससे बड़ा सत्य यह है कि इस समाज के अनेक प्रतिभावान बरसों से मेहनत करते हुए अपने भाग्य के भरोसे बैठे हुए हैं और भाग्य निर्माता है कि उनकी ओर देखते भी नहीं. इस सबका एक सबसे बड़ा कारण यह भी है कि मध्य प्रदेश में आदिवासी बहुल जिलों में जिला और संभाग स्तर पर पार्टी के लगभग सभी महत्वपूर्ण पदों पर सवण समाज का ही कब्जा है. और स्थानीय नेताओं की सेवा एवं समर्पण के हिसाब से ही इस वर्ग के योग्य उम्मीदवारों को आगे पीछे किया जाता है. अनेक प्रकरण में तो फर्जी सर्टिफिकेट के आधार पर ही इन स्थानीय नेताओं ने संसद और विधायक बनवा दिए क्योंकि वह उम्मीदवार उनकी निजी पसंद थे. जब टिकट का वितरण होता है तब स्पष्ट रूप से समझ में आता है इन नेताओं द्वारा उन्ही उम्मीदवारों को आगे किया जाता है जो अपना व्यक्तिगत प्रभाव नहीं रखते हो और यस सर जी सर की परंपरा का पालन करते हो. इस समाज की विडंबना है कि जैसा कि इस बार के चुनाव में हुआ अनेक प्रतिभाशाली अन्य समाज के प्रतिभाशाली युवा लोकसभा और विधानसभा पहुंचे वही इन्हें अथवा इस समाज के प्रतिभाशाली नवयुवकों को कोई वास्तविक प्रमोटर नहीं मिला. इसलिए ऐसा कहना उपयुक्त नहीं होगा कि इस समाज में आदिवासी नेताओं की कमी है यदि कमी है तो कमी जौहरी की है. जय हिंद।

शिवमोहन सिंह प्रधान संपादक पंच सरपंच समाचार भोपाल मध्य प्रदेश