रमेश शर्मा
कल्पना दत्ता भारत की ऐसी क्राँतिकारी थीं जो संघर्ष की प्रत्येक धारा में रहीं। पहले सशस्त्र क्रान्ति की गतिविधियों में फिर अहिसंक आँदोलन में, फिर कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्य बनीं और अंत में सरकारी नौकरी भी की।
कल्पना दत्ता का जन्म 27 जुलाई 1913 को बंगाल के चटगाँव जिला अंतर्गत श्रीपुर गाँव में हुआ था । यह क्षेत्र अब बंगलादेश में है । पिता बिनोद विहारी गुप्त सरकारी कर्मचारी के साथ वैद्य भी थे और यही उपनाम लिखा करते थे । कल्पना की प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई और आगे पढ़ने केलिये चटगाँव आईं। यहीं उनका संपर्क क्राँतिकारियों से हुआ ।1929 में उन्होंने चटगाँव से मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की और महाविद्यालयीन शिक्षा केलिये कलकत्ता भेजी गईं । उन्होंने बेथ्यून कॉलेज में प्रवेश लिया। क्राँतिकारियों से चटगाँव में बने संबंध यहाँ और गहरे हुये वे पढ़ाई के साथ क्राँतिकारी गतिविधियों में सक्रिय हो गई। और क्राँतिकारी संस्था हिन्दुस्तान रिपब्लिकन की सदस्य हो गई। इस संस्था का संचालन क्राँतिकारी सूर्यसेन करते थेव। कल्पना दत्ता के पिता चूँकि सरकारी कर्मचारी थे । इसलिये उन्हे काम करने में सुविधा थी । इसका लाभ क्राँतिकारी गतिविधियों को मिला । वे हथियार और सूचना यहाँ से वहाँ ले जाने का काम करने लगीं। खुद ने भी रिवाल्वर चलाना सीख लिया था । उनकी दो अन्य क्राँतिकारी बीना दास और प्रीतिलता वद्देदार के साथ एक टोली बन गई थी ।
क्रातिकारियों ने अपनी गतिविधि संचालन केलिये ब्रिटिश सरकार के चटगाँव शस्त्रागार को लूटने की योजना बनाई । 30 अप्रैल 1930 को शस्त्रागार पर छापा मारा । अन्य क्राँतिकारी तो नजर में आये पर कल्पना दत्ता पुलिस की निगाह से बच गई। क्राँतिकारी सूर्यसेन ने सितंबर 1931 में प्रीतिलता वडेदर के साथ चटगाँव में यूरोपीय क्लब पर हमला करने का काम सौंपा। जब वे हमले केलिये पूरे क्षेत्र का मुआयना कर रहीं थीं तब पुलिस क नजर में आ गईं और गिरफ्तार कर लीं गईं । पिता के प्रभाव से जमानत जल्दी हो गई लेकिन जमानत पर रिहा होकर वे परिवार से अलग छद्म वेश में रहकर क्रान्ति की गतिविधियों में सक्रिय हुई। लेकिन पुलिस ने पता कर लिया । 16 फरवरी 1933 को जब क्राँतिकारी जब अगली कार्यवाही की रणनीति बनाने के लिये गैराला गाँव में एकत्र हुये तब पुलिस ने छापा मार, सूर्य सेन सहित कुछ क्राँतिकारी गिरफ्तार हुये लेकिन कल्पना भागने में सफल रही। लेकिन पुलिस की नजर से अधिक न बच सकीं और 19 मई 1933 को गिरफ्तार कर ली गई। उन पर चटगाँव शस्त्रागार की लूट में सहभागी होने के साथ अन्य आरोप भी लगे और आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई। उन्हें जेल में भारी प्रताड़ित किया गया । लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि में 1939 में रिहा हो गई।
जब जेल से रिहा हुई तब तक क्राँतिकारी आँदोलन लगभग शाँत हो गया था । उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने का निर्णय लिया और 1940 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की । कुछ दिन अहिसंक आँदोलन में सक्रिय हुई। इसी बीच उनका संपर्क कम्युनिस्ट पार्टी के नेता पीसी जोशी से बना । वे पहले कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्य बनीः और फिर 1943 में पीसी जोशी से विवाह कर लिया । विवाह के बाद भारतीय सांख्यिकी संस्थान में नौकरी करने लगीं। 1971 में सेवानिवृत्ति के बाद कलकत्ता रहने लगीं । और 8 फरवरी 1995 को 82 वर्ष की अवस्था में उन्होंने देह त्यागी।